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सफर - मौत से मौत तक….(ep-28)

"और राणा सर् कैसे है" समीर ने बिना सोचे समझे अचानक ही सवाल किया तो मन्वी के चेहरे की रौनक अचानक ही गायब हो गयी ।

राणा सर्  का नाम सुनते ही मन्वी को याद आया उनका रोता हुआ चेहरा…. रिटायरमेंट की खुशी वालें दिन जब उन्हें विदाई दी जानी थी तो वो फफककर रोये थे, दिल दहलाने वाला सीन था। हाथ मे माइक पकड़ाकर उन्हें उनके दिल की बात कहने को कहा था, लेकिन उनके दिल से बात तो कम दिल की भड़ास ज्यादा निकली,  मतलब इतना रोये और इस कदर रोये जैसे कोई लड़की अपनी विदाई में रोती है। किसी की हीम्मत नही हुई उन्हें चुप कराने की, बच्चा बच्चा तक अपने आंखों को नम कर चुका था। बहुत सवेंदना से उस दिन उन्होंने बस चार शब्द कहे थे- "पहले मैं सोचता था कि रिटायर्ड होना अच्छी बात है, पेंशन भी मिलेगी, काम भी नही करना पड़ता है, फिर भी रिटायरमेंट में सब खुद को दुखी क्यो बताते है, जबकि अगले दिन भव्य पार्टी देते है, मगर आज समझ आया वो दुख…. आज के बाद ना बच्चो के बीच आना जाना होगा, ना उठना बैठना होगा। मुझे इस विद्यालय ने बहुत कुछ दिया है, मैं कुछ देकर नही लेकर ही जा रहा हूँ, जैसे अभी प्रधानाचार्य जी बोल रहे थे कि आपने जो इस स्कूल को दिया है हम आपके आभारी है, लेकिन मैं बताना चाहता हूँ कि मैंने कुछ भी नही दिया , हमेशा लेता ही आया हूँ, और लेकर ही जा रहा हूँ, आप लोगो का प्यार, आप लोगो से जो सम्मान में लेकर जा रहा हूँ ये मुझे इस विद्यालय से ही मिला है। मेरा हिंदी विषय था तो हिंदी की चंद पंक्तियों की एक कविता के साथ मैं अपनी बात को समाप्त करूँगा…. " कहते हुए राणा जी ने जेब से रुमाल निकालकर माइक से थोड़ा दूर हटते हुए आपने आंसू पोछे, सब लोग बहुत भावुकता से राणा जी को देख रहे थे।

राणा जी एक बार फिर माइक के पास आये और बोले-


"उड़ती पतंग….उड़ती गयी
फरफराते, फड़फड़ाते
धागे के हल्के हल्के झटकों  को सहती गई।
जितने ज्यादा झटके उतनी ऊँचाई पर बहती गयी
जो हाथ से छूटा धागा, या थोड़ी ढील उसे दिया जायेगा
आ गिरेगा जमीन पर, और ऊपर ना जा पायेगा।
तुम पतंग हो बच्चो, कोमल पन्ने के
तुम्हारी हिफाजत और तुम्हे उड़ाने के लिए हम है।
धागा हमारे हाथ मे कसा हुआ,
ऊंचाई जितना है लगता उतना भी कम है।
हमने तुम्हे दिए झटके, ढील नही  कभी दी
बुरा तुम्हे लगेगा जरूर,
ये एक कि नही बात है सभी की।
मगर सोचो,खुद ही सोच लो
तुम्हे ऊपर उड़ना है या जमीन पर गिरना है"


बस इतनी सी बात बोलकर राणा जी अपने कुर्सी ओर जा बैठे।

"राणा जी….वो तो रिटायर्ड हो गए….अब उनकी जगह कोई और आ गए है" मन्वी ने समीर के सवाल का जवाब दिया।

"तुम्हे बड़ी याद आ रही है राणा जी की, उस दिन उनकी शिकायत लगा दी थी मुझसे, ख़ामोखा प्रिंसिपल को चार बाते सुना दी मैंने" नंदू बोला।

"चार बाते नही पापा, आपने तो उस दिन कमाल ही कर दिया, उसके बाद दो साल तक किसी टीचर्स की हीम्मत नही हुई मेरी बेइजत्ती करने की" समीर खुश होकर बोला

"वो सब छोड़ो अभी मेरी इज्जत रख लो….और वैसे भी शादी तो एक दिन करनी है।" नंदू बोला।

राजू कुछ बोलने के लिए मुंह खोलने लगा था कि मन्वी बोल पड़ी - "अंकल जी, क्यो दबाब डाल रहे हो उनपर, वैसे भी अभी मेरा भी कोई विचार नही है शादी करने का, मैं तो आपसे मिलने के लिए पापाके साथ आ गयी"

अब राजू ने जो बोलने के लिए जुबान खोली थी उसे बोलने का कोई मतलब नही रह गया था, क्योकि वो भी यही बोलने वाला था कि बच्चे पर दबाब नही डालना चाहिए
"मन्वी ठीक कह रही है" राजू ने कहा।

समीर मन ही मन सोचने लगा
"मैं जानता हूँ कि अपना मन रखने के लिए दोनो बहाने कुछ इस तरह लगाओगे, लेकिन लगा लो जितने लगाने है, मुझे कोई फर्क नही पड़ता"

नंदू अपनी कुर्सी थोड़ा खिसकाकर ठीक से बैठते हुए बोला- "मैं उसपर दवाब नही डाल रहा हूँ, लेकिन शादी नही करने के पीछे कोई कारण तो हो, उम्र हो गयी है, लड़की भी मिल गयी है, लेकिन बात क्या है जो मना  कर रहा"

अब समीर उनकी बातों से परेशान होने लगा था, एक मन तो कर रहा था कि बता दूं कि मैं मन्वी से नही इशानी से शादी करना चाहता हूँ, लेकिन एक डर भी था पिताजी का, भले मनमानियां समीर करने लगा हो, लेकिन एक पर्दे में रहकर करता था, और नंदू की नजर में अब तक शुशील संस्कारी था,
"कोई बात नही यार, इतना सीरियस मेटर भी नही है, अभी वक्त है दोनो के पास" राजू बोला।

"रात बहुत हो गयी है, मैं सोने जा रहा हूँ, आप लोग जारी रखिये मीटिंग" कहकर समीर खड़ा उठ गया।

मन्वी ने समीर की तरफ देखकर कहा- "आई थिंक यु हैव अ लाई इन योर आईज। यू आर प्रोबबली रैफ्यूसिंग मी फॉर समवन एल्स"
(मेरे ख्याल से आपकी आंखों में एक झूठ है। आप शायद किसी और के लिए मुझे मना कर रहे हैं।)

". यू आर एब्सोल्यूटली राइट , आई"एम डूइंग ऑल दिस फ़ॉर समवन एल्स, एंड आई विल टेल्ल दिस थिंग टू एवरीवन व्हेन द टाइम कम्स। आई हैव नो टाइम टू एक्सप्लेन इट टू एवरीवन।" (तुम बिल्कुल सही कह रही हो, मैं किसी और के लिए ही ये सब कर रहा हूँ। और ये बात मैं समय आने पर सबको बताऊंगा, अभी वक्त नही की सबको समझा पाउँ।) समीर ने कहा।

"ये क्या बात कर रहे हो, पटर पटर….अगर कोई बात अकेले में करनी  है तो हम चले जाते है नीचे" नंदू बोला।

"नही अंकल ऐसी कोई बात नही, वो कह रहे है कि मैं इस बारे में सोच विचार करके कोई फैसला लूँगा, और उसके बाद इन्फॉर्म कर दूंगा" मन्वी बोली।

"यही तो हम भी बोल रहे है कि इस मामले में सोच विचार करना, उसके बाद फैसला लेना….और वैसे भी ये बात तो हिंदी में भी बोल सकता था" नंदू बोला।

समीर अब बिना कुछ बोले ही वहाँ से चला गया। मन्वी ने एक लंबी सांस भरी और मन ही मन सोचा- "मुझे शुरू से ही शक हो गया था कि वो क्यो मना कर रहे है, आखिर जिस बात का डर था वही हुआ…."

" मैं भी जाकर सो जाती हूँ, प्लीज अंकल रूम दिखा दीजिए" मन्वी बोली।

नंदू और राजू भी उठ खड़े हुए और नंदू ने चारों कुर्सियां एक के ऊपर एक चढ़ाकर किसी  कपड़े से ढक दी, और दोनो मेहमानों को उनका रूम दिखाया।

नीचे कमरे में आकर समीर ने इशानी से फोन पर बात करते हुए उसे मीटिंग की बात बताई,

"तुम तो पागल ही हो, इतना अच्छा मौका हाथ मे आया था,  माहौल शादी की बात करने का चल रहा था, और तुमने बात भी नही की….पागल ही हो। अगर पापा को बोल देते की मन्वी से नही किसी और से शादी करना चाहता हूँ तो उसके बाद ना मन्वी कुछ बोलती नई मन्वी का बाप कुछ बोलता, आपके पापा भी बोलते तो यही की कौन है वो लड़की"  इशानी ने कहा।

"अरे यार! तब दिमाग मे आया नही, हाँ लेकिन मन्वी को बोल दी ये बात अंग्रेजी में….वो समझ गयी है" समीर बोला।

"अरे यार! उसके समझने ना समझने से क्या होगा, उसने थोड़ी हमारी शादी करवानी है, समझना पापाजी ने है, ये बात अपने पापा को बोलो…." इशानी बोली।

"अब तो मीटिंग खत्म हो गयी, अब थोड़ी रखेंगे मीटिंग बार बार" समीर बोला।

"मीटिंग का इंतजार मत करना, जहाँ भी सब एक साथ नजर आए तो अपनी दिल की बात बोल देना, मैंने अपनी मम्मी से बात कर ली है, पापा तो मेरी हर बात मानते है,मम्मी की टेंशन थी अब वो खत्म हो गयी। कल सुबह आफिस जाते जाते अपने पापा को बोल देना की आप किसी और से शादी करना चाहते है,  और शाम को मेरे घर पर आना है तुमने, मम्मी मिलना चाहती है।" इशानी ने कहा।

"मैं कोशिश करूँगा सुबह बात करने की" समीर बोला।

"कोशिश नही पक्का बात करनी है, मैं  लड़की होकर इतनी हीम्मत कर रही हूँ, और आप तो लड़के हो यार, और वैसे भी करना आपने खुद ही है, कौन सा शादी वो करेंगे, खर्चा आपने करना है, उनका खर्च भी आप ही उठा रहे हो, फिर भी इतना डरते क्यो हो" इशानी बोली।

"मैं डरता नही हूँ, इज्जत करता हूँ" समीर बोला।

"इसे इज्जत करना नही डरना कहते है, कल सुबह पापा से बात कर लेना, नही तो मुझसे बात मत करना" इशानी बोली।

"यार! धमकी तो मत दो कम से कम" समीर बोला।

"धमकी नही, समझा रही हूँ, ज्यादा से ज्यादा क्या करेंगे, आपका कुछ नही बिगाड़ सकते वो, ना घर से निकाल सकते है, ना जायजाद से बेदखल कर सकते है, क्योकि सब पहले से तुम्हारे नाम का है, गुस्सा भी करेंगे तो दो दिन बात नही करेंगे, उससे ज्यादा कुछ नही होगा" इशानी बोली।

"हम्म बात तो सही है, कुछ नही कर सकते, वैसे भी पापा मुझसे बहुत प्यार करते है, वो मेरा कुछ बिगाड़ने की सोचेंगे भी नही, जो भी सोचेंगे अच्छा ही सोचेंगे।"

कुछ देर इस तरह बात करने से समीर के अंदर हीम्मत आ गयी थी। जब दोनो की बातचीत खत्म हुई तो समीर ने सोच लिया था कि वो सुबह इठकर जरूर बात करेगा।


*****


सुबह मन्वी और राजू ने वापस जाना था, पुष्पाकली ने सबके लिए नाश्ता बनाया, रोज नौ बजे जाने वाला समीर आज नौ बजे से पहले ही तैयार हो गया था, और खाने के टेबल के पास बैठकर पुष्पाकली से बोला- "सुनो……सभी लोगो को बोलो, पहले सब साथ बैठकर नाश्ता करेंगे, बुला लाओ सबको"

थोड़ी देर में सब एक साथ बैठ चुके थे।

"पापाजी….मुझे आप सबसे एक बात करनी है" समीर ने कहा।

"हाँ बोलो….क्या बात है" नंदू बोला।

"अभी नही, पहले सब खाना खा लेते है, वरना मेरी बात सुनकर कोई खायेगा भी या सबकी भूख खत्म हो जाएगी"  समीर ने कहा।

" जिस तरीके से तुम बात कर रहे हो ऐसे तो बिना बात सुन भी खाना हलक से नीचे नही उतरेगा" नंदू बोला।

"अरे ! बात बताओ बेटा….ऐसी भी क्या बात है जिसे कहने से घबरा रहे हो" राजु ने कहा।

"वो मैं….मैं कह रहा था कि मैं शादी तो करना चाहता हूँ….लेकिन…." लेकिन कहकर समीर रुक से गया।

" लेकिन क्या बेटा…." नंदू ने पूछा।

"लेकिन मुझसे नही……" मन्वी बोल पड़ी।

राजू और नंदू ने एक साथ मन्वी कि तरफ देखा- "ये क्या कह रही हो तुम..…." राजु ने मन्वी से कहा।

"हाँ……सही कह रही है वो" समीर ने कहा।

राजू और नंदू दोनो ने अब एक साथ समीर की तरफ गर्दन घुमाई।

"लेकिन किससे करना चाहते हो….? "इस बार दोनो एक साथ बोल पड़े।

"जिससे ये प्यार करते है, जिसके साथ इनको खुशी मिलती है, उससे करेंगे, जबरदस्ती थोड़ी आप लोगो की दोस्ती के चक्कर मे किसी का दिल तोड़ेंगे वो…." मन्वी ने जवाब दिया।

नंदू और राजु ने मन्वी की तरफ देखा। ये दोनों जिस तरफ से आवाज आ रही थी उधर को देख रहे थे, लेकिन समीर और मन्वी दोनो के गर्दन झुके हुए थे, दोनो की नजर अपनी अपनी खाने की प्लेट पर थी, समीर सलाद के टुकड़े को दाल में हिला रहा था तो मन्वी चम्मच को उंगली से मसलते हुए अपने चेहरे के उल्टे प्रतिबिंब को देख रही थी।

"हमे कुछ समझ नही आया" नंदू बोला।

अब मन्वी के अपना सिर उठाया और मुस्कराते हुए बोली- "बधाई हो अंकल जी, आपकी बहु लाने की तमन्ना जल्द ही पूरी होने वाली, लड़की ढूंढ ली गयी है, बस आपसे मिलवाना बाकी है। और अब जल्द ही समीर जी आपको आपकी बहु के दर्शन करवाएंगे"

नंदू ने समीर कि तरफ़ देखा जो अब भी सिर झुकाए था
"ये क्या बोल रही है?"

"समीर ने पापा की तरफ एक नजर देखा और फट से नजर झुका ली और डरते हुए बोला- "ये बिल्कुल सही कह रही है,  मैंने सिर्फ उस से शादी करनी है जिसे मैं पसंद करता हूँ, और उसे अब मना करके मन्वी से शादी करके मैं ना उसका दिल तोड़ सकता हूँ ना उसे धोखा देना चाहता हूँ" समीर बोला।

मन्वी समीर को दिल से निकलना चाहती थी, लेकिन समीर की बाते तो और भी मन्वी के दिल मे जगह बना रही थी। मन्वी समीर को डाँट खिलाने से बचाने के लिए बोली- "अगर आपने हीम्मत करके यही बात अंकल को पहले बता दी होती तो अंकल इतना टेंशन नही लेते बहु ढूंढने की….है ना अंकल जी?"

"जब परसो बात गोल गोल घुमा रहा था, तब डायरेक्ट बोलता तो राजू को परेशान नही करता मैं" नंदू बोला।

राजू एक गिलास पानी पीते हुए मुस्कराया, लेकिन उसके दिल का दर्द कोई नही समझ पा रहा था, अपनी बेटी की शादी के सपने को सजाकर आया था, हालांकि मन्वी के चेहरे में मुस्कान देखकर उसे थोड़ी हीम्मत मिली थी, बेटी तो शायद एक्सपर्ट थी अपना दिल का हाल छिपाने में, लेकिन राजू की आवाज में फर्क आने लग गया था, दबी सी आवाज में राजू बोला- "चलो अब अगले बार समीर की शादी में आएंगे, और बेटा जरा जल्दी लड़की को पापा से मिलवा ले और उनके मम्मी पापा से भी बात कर लेना, टकीं शादी की बात जल्दी आगे बढ़े, और हमे फिर से मेहमान बनकर आने का मौका मिले।"

समीर भी बातो में फिसलता हुआ बोल पड़ा- "आज शाम को ही बुलाया है उसकी मम्मी ने मुझे मिलने, एक बार उनसे बात कर लूंगा तो फिर पापा के साथ जाऊंगा लड़की देखने"

"वाह! लड़की की माँ से भी बात हो गयी,  शादी की बात भी हो गयी,  जब सबकुछ तय हो गया था तो मुझे सीधे शादी का कार्ड ही थमा देना था, मैं भी आ जाता शादी में…" नंदू ने   गुस्सा दिखाते हुए कहा।

"वो मैं परसों आपको बताने वाला था, लेकिन आप सुनते कहाँ है किसी की, अपनी लगाकर बैठ गए कि मन्वी से शादी करा देंगे, सुनोगे तो बताऊंगा ना" समीर बोला।

"चलो अब झगड़ा छोड़ो , जो हो गया सो हो गया, अभी खाना खा लो" राजू बोला।

अब चारो तरफ सन्नाटा था,सब अपनी अपनी थाली को घूरने लगे, खाने की इच्छा तो शायद ही किसी की होगी।

समीर ने एक निवाला खाया और उठकर जाने लगा तभी नंदू बोला।

"शाम को जा रहे हो वहाँ…." नंदू ने सवाल किया।

"हाँ..एक चक्कर लगाकर आना पड़ेगा, आप खाना खाकर सो जाना, मैं खाकर आऊंगा" समीर बोला।

"ठीक है, लेकिन अभी आफिस थोड़ी लेट चले जाना,  अंकल को स्टेशन तक छोड़ना है तुम्हे" नंदू बोला।

"जरूरत नही है अंकल जी, जैसे हम आ गए वैसे चले जायेंगे, क्यो परेशान कर रहे हो उन्हें" मन्वी बोली।

"कोई बात नही मैं छोड़ आऊँगा, वैसे भी आज आफिस में ज्यादा काम नही है" समीर बोला।

थोड़ी देर बाद मन्वी और राजू को  नंदू ने विदाई दी….और दोनो समीर की गाड़ी में बैठ गए।

रास्ते मे समीर ने मन्वी को थेँक्स बोला- "आज तुम्हारी वजह से पापा को दिल की बात बोल दी है मैंने….वरना मुझमें इतनी हीम्मत नही थी" समीर ने कहा।

"पापा से दोस्ती रखा कीजिये, जैसे बचपन मे सारी बात पापा को बताते थे, अब भी बताया कीजिये। पापा अपने बच्चों को हमेशा बच्चे ही मानते है, उनकी हर गलती को माफ कर देते है जैसे बचपन मे किया करते थे। लेकिन जब बच्चे खुद को बड़ा समझने लगते है तो फिर दोस्ती बरकरार नही रहती और दूरियां आ जाती है" मन्वी ने कहा।

मन्वी की बात सुनकर राजू ने भी समीर से एक बात कही- "जिंदगी में जितने रंग नही होते उससे ज्यादा रंग देखे है नंदू भाईसाहब ने, वो तुम्हारी हर बात समझेंगे, अगर  प्यार से समझाओगे तो, ऐसे बाते आधी अधूरी, गोल मटोल करने से गलतफहमियां बढ़ती है"

समीर उन दोनों की बात सुन रहा था….थोड़ी देर में स्टेशन छोड़कर आफिस की तरफ चले गया।

मन्वी और राजू बस में बैठे, एक बार फिर, खिड़की की शीट और नजरे बादलों पर थी, मन्वी ने अपने हाथ मोड़कर उसके ऊपर सिर झुकाकर रखा और सोने के बहाने रोने लगी। बस में हो रहा शोर और बस का हिलना डुलना भी मन्वी का साथ दे रहा था।  क्योकि राजू को खबर नही हो रही थी कि मन्वी सो रही है या रो रही है।

समीर ने जाते हुए उसने इशानी को ये खुशखबरी देने के लिए फोन किया

"हेलो……" समीर बोला

"हांजी….जो बोला था वो किया" इशानी ने फोन उठाते ही अकड़ से कहा।

"हां….कर ली बात, और पापा मान भी जाएंगे" समीर खुश होते हुए बोला ।

"और वो चली गयी मेरी सौतन बनने के फिराक में जो आयी थी" इशानी ने मन्वी के बारे में पूछा।

"अभी उन्ही को छोड़कर आ रहा हूँ, मेरा तो दिमाग का दही बना दिया बाब- बेटी ने, इतना ज्ञान झाड़कर गए है कि पूछो मत…." समीर बोला।

"चलो ठीक है, शाम को मिलते है….थोड़ा बन ठनकर आना, और जो समझाया है वैसे ही पेश आना, समझ गए ना"  इशानी बोली।

"हाँ बाबा हाँ, जैसा बनने को बोला है वैसा ही बनकर आऊंगा" समीर बोला।

पीछे की शीट में बैठे नंदू अंकल (नंदू की आत्मा) बोला- "

बदल रही है वो तुझे,
और तू हर पल बदलता जा रहा है।
मेरे कुल का दीपक
ना जाने क्यो ढलता जा रहा है।
जब किसी के बताई बाते ज्ञान की
बकवास लगने लगे तो समझ जाना
तू बर्बादी की तरफ चलता जा रहा है

कहानी जारी है

नोट- अगले एपिसोड में  समीर की शादी  है, आप सभी पाठकगण आमंत्रित है, कृपया समीर की शादी में आकर, समीर और इशानी को आशीर्वाद स्वरूप चार शब्द बोलेंगे।😊😊🌼🌼🌼🙏🙏


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3 Comments

Swati chourasia

10-Oct-2021 08:42 PM

Very nice

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Fiza Tanvi

28-Sep-2021 06:39 PM

Bahut badiya

Reply

Shalini Sharma

22-Sep-2021 11:46 PM

शानदार प्रस्तुति

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